
उत्तराखण्ड राज्य की परिकल्पना आज से लगभग 42 वर्ष पूर्व इस नारे के साथ हुई थी -
"रहे चमकता सदा शीर्ष पर, ऐसा उन्नत भाल बनाओ, उत्तराखण्ड को राज्य बन कर भारत को खुशहाल बनाओ।"
राष्ट्र का मान रखते हुए एक पृथक, आत्मनिर्भर एवं आदर्श हिमालाई राज्य के निर्माण का प्रस्ताव था। 22 वर्षों के संघर्ष, 42 शहादतों के बाद यह राज्य हमने, उत्तराखण्ड की जनता ने इन तथाकथित राष्ट्रीय दलों से छीना। यह किसी की कृपा से हमें नही मिला है।
दुर्भाग्य से पिछले 20 वर्षों से यही उत्तराखण्ड विरोधी दल, उत्तराखण्ड की सत्ता पर कायम हैं। दिल्ली में बैठे इनके आका समय-समय पर यहां बैठे अपने अनुगामियों के साथ उत्तराखण्ड का हास्य पूरे देश के समक्ष बनाते आए हैं। बचा-कुचा काम जब ये अनुयायी मीडिया के सामने मुँह खोलते हैं, तब हो जाता है।
क्या वास्तव में ऐसे लोग हमारा प्रतिनिधित्व करने के लायक हैं?
इन 20 वर्षों में उत्तराखण्ड ने कार्यकाल के हिसाब से 13 और चेहरों के हिसाब से 10 मुख्यमंत्री देखें हैं। यह साफ-साफ प्रदर्शित करता हैं कि इन राष्ट्रीय - अंतरष्ट्रीय दलों में उत्तराखण्ड के इन प्रतिनिधियों का कितना महत्व है।
20 वर्ष के समय में भारत के किसी भी राज्य ने इतने मुख्यमंत्री नही देखें हैं। इन पिछले वर्षों से जिस तरह से संविधान की अवहेलना इस डबल इंजन सरकार द्वारा की जा रही है, वह दुखद एवं भयावह है।
मार्च, 2021, कोविड-19 का ही दौर था, महामारी से लड़ने की नीतियों पर काम होना था, ऐसे में 70 में से 56 विधायकों वाली मौजूदा सरकार के मुख्यमंत्री को विधानसभा स्थगित कर, इस्तीफा देने के लिए दिल्ली बुला लिया जाता है।
फिर नए मुख्यमंत्री के आने के बाद जब इनकी सरकार की छवि और धूमिल हो चुकी है, ऐसे में उपचुनाव से बचने के लिए एक और मुख्यमंत्री द्वारा स्तीफा दिया गया है।
उत्तराखण्ड राज्य जिसके निर्माण, जिस राज्य आंदोलन का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, आज वह एक केन्द्रशासित प्रदेश से भी बुरी तरह केंद्र के इशारों पर चल रहा है।
राज्य के किसी भी निर्णय में जब राज्य के लोगों की कोई भी हिस्सेदारी नही है, तब राज्य की सम्पति, राज्य के जल, जंगल और ज़मीन का सौदा होना स्वाभाविक है।
3 महीनों में ही नए मुख्यमंत्री (अब पुराने) ने स्तीफा दे दिया है। जब कार्य करने की कोई नीयत ही नही है, तब मुख्यमंत्री बदलने से क्या होगा।
बहरहाल पुष्कर सिंह धामी जी को मेरी शुभकामनाएं! उम्मीद है इन 20 वर्षों में जो शिक्षा नीति, स्वास्थ्य नीति, रोज़गार नीति, ऊर्जा नीति, आद्योगिक नीति, स्थाई राजधानी, भूमि प्रबंधन, मूल विवास, ठेकेदारी व्यवस्था समाप्त करना, जल - जंगल और अन्य प्राकृतिक संसाधन के उचित प्रबंधन जैसी समस्याएं जिनका उपाय पिछले 20 साल की सरकारें और मुख्यमंत्री नही कर पाए, उनके उपाय के लिए अगर एक कदम आगे बढ़ने का साहस नए युवा मुख्यमंत्री जुटा सकें तो वही उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी! जय हिंद, जय उत्तराखण्ड!
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